कब बनाएं शारीरिक संबंध ताकि...


शास्त्रों में शारीरिक आकर्षण
लोगों में यह आम मत पाया गया है कि ‘धार्मिक होना’ और ‘गृहस्थी बढ़ाना’, दो अलग-अलग बातें हैं। एक व्यक्ति इन दोनों पहलुओं को अपने जीवन पर पूर्ण रूप से अमल नहीं कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है...हमारे शास्त्र जीवन के दोनों पहलुओं को इंसान के लिए अहम मानते हैं। कामशास्त्र ग्रंथ एवं खजुराहो मंदिर इस बात के प्रतीक हैं कि भगवान के नाम के साथ-साथ व्यक्ति के लिए अपना परिवार एवं वंश आगे बढ़ाना भी जरूरी है।
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शास्त्रों में शारीरिक आकर्षण एवं संभोग जैसी बातों का जिक्र आप पा सकते हैं। शारीरिक आकर्षण पति-पत्नी के बीच हो या अनजान स्त्री-पुरुष के बीच, हर तरह के संबंध के साक्षी रहे हैं हिन्दू शास्त्र।पति-पत्नी को कब शारीरिक संबंध स्थापित करने चाहिए एवं कब नहीं, इस बात का उल्लेख भी शास्त्रों में किया गया है। इससे संबंधित जानकारी मनुष्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में पा सकता है।लेकिन ऐसे संबंध किस समय बनाने मनुष्य के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं, आज इस विषय पर हम यहां चर्चा करेंगे। यह जानकारी आपने पहले कभी प्राप्त नहीं की होगी, लेकिन यह हर किसी के काम अवश्य आती है।
रतिक्रिया का समय 

शारीरिक संबंध, सम्भोग या फिर शास्त्रीय उल्लेख के अनुसार जिसे हम रतिक्रिया कहते हैं... इस बाबत हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार रतिक्रिया का एक उचित समय होता है, जिसमें यदि यह किया जाए तो फलित सिद्ध होता है।शायद आप इस जानकारी से वंचित हों कि सनातन धर्म में रतिक्रिया को एक अवश्यंपभावी अनुष्ठातन बताया गया है। उल्लेरख के अनुसार रतिक्रिया सभी प्राणी संपन्नप करते हैं।रतिक्रिया करने का उद्देश्य धर्म शास्रों के अनुसार संतान उत्पत्ति ही है। आज के मनुष्य के लिए भले ही यह आनंद का भी माध्यम हो, लेकिन शास्त्र इसे गृहस्थी बढ़ाने से ही अधिक जोड़ते हैं।रतिक्रिया करने का उद्देश्य धर्म शास्रों के अनुसार संतान उत्पत्ति ही है। आज के मनुष्य के लिए भले ही यह आनंद का भी माध्यम हो, लेकिन शास्त्र इसे गृहस्थी बढ़ाने से ही अधिक जोड़ते हैं।इसलिए यह जानना अति आवश्यक हो जाता है कि किस समय की गई रतिक्रिया हमें अच्छी संतान देती है, जो तन एवं मन दोनों से ही सर्वश्रेष्ठ हो।शास्त्रों की मानें तो रात का समय ही रतिक्रिया के लिए पर्याप्त माना गया है, किंतु क्या रात्रि का कोई भी समय इसके लिए सही है?आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रतिक्रिया के समय से ही होने वाली संतान का भविष्य निर्धारित होता है। जी हां... क्योंकि रतिक्रिया का विशेष समय ही उस संतान को लाता है एवं यही समय उसके आने वाले कल का निर्धारण भी करता है।
इसलिए यह जानना अति आवश्यक हो जाता है कि किस समय की गई रतिक्रिया हमें अच्छी संतान देती है, जो तन एवं मन दोनों से ही सर्वश्रेष्ठ हो। शास्त्रों की मानें तो रात का समय ही रतिक्रिया के लिए पर्याप्त माना गया है, किंतु क्या रात्रि का कोई भी समय इसके लिए सही है? शायद नहीं... क्योंकि शास्त्रों ने रात्रि के समय में से एक ऐसा समय हमारे सामने प्रस्तुत किया है जो यदि रतिक्रिया के लिए उपयोग में लाया जाए तो उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।धर्मशास्त्र कहते हैं रात्रि का पहला पहर रतिक्रिया के लिए उचित समय है। यह एक मान्याता है कि जो रतिक्रिया रात्रि के प्रथम पहर में की जाती है, उसके फलस्वकरूप जो संतान का जन्मह होता है, उसे भगवान शिव का आशीष प्राप्त होता है।कहा गया है कि ऐसी संतान सभी गुणों से सम्पन्न होती है। इस समय पर रतिक्रिया करने से आने वाली संतान अपनी प्रवृत्ति एवं संभावनाओं में धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कातरवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वीि एवं आज्ञाकारी होती है।चूंकि ऐसे जातकों को शिव का आर्शीवाद प्राप्तह होता है, इसलिए वे लंबी आयु जीते हैं एवं भाग्यक के भी प्रबल धनी होते हैं।लेकिन रात्रि के इस प्रथम पहर को ही रतिक्रिया के लिए सर्वश्रेष्ठ क्यों माना गया है? इसके पीछे का धार्मिक एवं शास्त्रीय महत्व क्या है? क्या कोई ठोस कारण है?दरअसल रात्रि का प्रथम पहर धार्मिक मान्य।ता के अनुसार पवित्र माना गया है। क्योंकि प्रथम पहर के बाद राक्षस गण पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकलते हैं। इसलिए यह रतिक्रिया प्रथम पहर समाप्त होने से पहले ही की जानी चाहिए।क्योंकि इसके बाद जो रतिक्रिया की गई हो, उससे उत्परन्नम होने वाली संतान में राक्षसों के ही समान गुण आने की प्रबल संभावना होती है। इसके चलते वह संतान भोगी, दुर्गुणी, माता-पिता एवं बुजुर्गों की अवमानना करने वाली, अनैतिक, अधर्मी, अविवेकी एवं असत्यु का पक्ष लेने वाली होती है।लेकिन अगर घड़ी के समय के अनुसार जानना हो तो प्रथम पहर कौन सा होता है? धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद यह पाया गया है कि रात्रि का पहला पहर घड़ी के अनुसार बारह बजे तक रहता है और इसी समय काल को रतिक्रिया के लिए उचित माना गया हैऔर इसके अलावा शेष बचा रात्रि का समय रतिक्रिया के लिए अशुभ माना गया है क्योंकि इन अन्ये पहरों में की गई रतिक्रिया से ना केवल होने वाली संतान अवगुणी होती है बल्कि साथ ही पति-पत्नी के जीवन में भी शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट आते हैं।
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