चौंका देने वाले संयोग


ये हैं 15 चौंका देने वाले संयोग जिनके बारे में पढ़ कर आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी अगर आपके 

कॉलेज में आपका कोई दोस्त, अनजाने में, आपके जैसी ही टी-शर्ट पहन कर आ जाए तो इसे संयोग कहते हैं. 

अब ज़रा सोचो कि अगर इस दोस्त का बर्थडे भी उसी दिन आता है जब आपका, तब भी शायद आप इसे संयोग 

ही कहेंगे. लेकिन अगर में कहूं कि ये दोस्त उसी अस्पताल में पैदा हुआ था जहां आप, बस अंतर ये था कि जहां 

ये पैदा हुआ था उस कमरे का नंबर था 102 और आपके कमरे का नंबर था 201, तो इसे क्या कहोगे? संयोग? 

किसी फ़िल्म की कहानी? या फिर ऊपरवाले की माया? यकीन मानो कि ऐसे कई, और भी अजीब, और भी चौंका 

देने वाले संयोग इस धरती पर घटे हैं. और कुछ बड़े ही रोचक और मज़ेदार संयोग हम आपके लिए ले कर आये 

हैं. हैरान होने के लिए तैयार हो जाओ... 

1. नाम का फेर 2013 में अभिनेता राजकुमार राव ने 'शाहिद' नाम की फ़िल्म में काम किया था और कुछ 

ही दिन बाद शाहिद कपूर की एक फ़िल्म आयी थी जिसका नाम था 'आर. राजकुमार'. 

2. भाइयों की ट्रेजेडी नेविल और एरस्किन एबिन, दो भाई थे जिनकी मृत्यु 17 साल की कम उम्र में एक टैक्सी 

एक्सीडेंट में हो गयी थी. अब चौंकाने वाली बात ये है कि दोनों की मृत्यु एक साल के अंतराल में हुई, जब दोनों 

एक ही मोपेड चला रहे थे. इससे भी ज़्यादा हैरत की बात ये है कि एरस्किन एबिन का एक्सीडेंट उसी टैक्सी से 

हुआ, जिस टैक्सी से नेविल का हुआ था. उस टैक्सी को वही ड्राइवर चला रहा था जो पहले एक्सीडेंट में शामिल 

था और उसकी टैक्सी में वही इंसान बैठा हुआ था जो नेविल के एक्सीडेंट के समय बैठा था. यकीन नहीं होता तो 

1975 की ये न्यूज़पेपर क्लिपिंग देखो... 

3.क्रिकेट के भगवान, सचिन तेंदुलकर और भारतीय क्रिकेट के उभरते सितारे, विराट कोहली के बीच का संयोग 

सचमुच अचम्भे में डालने वाला है. 28 दिसंबर, 1999 को सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़, पांचवे टेस्ट मैच में, 

मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर, उन्नीसवीं पारी में 1000 रन पूरे किये थे. ठीक 15 साल बाद, विराट कोहली ने भी 

ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़, पांचवे टेस्ट में, मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर, उन्नीसवीं पारी में 1000 रन पूरे किये. इस 

कीर्तिमान के समय दोनों की उम्र 26 साल थी और दोनों MRF के बैट से ही खेल रहे थे.

भारत में वेश्यावृति का सफ़र काफ़ी दिलचस्प रहा है. यहां पर शहर की सभी खूबसूरत लड़कियों को एक प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा जाता था, जो लड़की इस प्रतियोगिता को जीतती थी उसे नगरवधु के ख़िताब से नवाज़ा जाता था. इस नगरवधु का देवियों की तरह सम्मान किया जाता था. इस नगरवधु के साथ रात गुज़ारने की कीमत इतनी ज़्यादा होती थी कि शाही परिवार के अलावा कोई अन्य इसे जुटाने की सामर्थ्य नहीं कर पाता था.







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